Definition, Difference, knowledge and usages of Qualitative and quantitative research? गुणात्मक और मात्रात्मक अनुसंधान के तरीके क्या है?

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गुणात्मक और मात्रात्मक अनुसंधान के तरीके क्या है? 
What is Qualitative and Quantitative research methodologies?


Qualitative and quantitative research methodology or two broad categories of research which are utilised to collect the data and to analyse the data. Both are used in different set of situation and the purpose of both the research methodology or also different. It also happens that both can be used in the same research and both can separately be used in different different type of research. Either case can be there. Of course, there are some common factor related to both of the research as well as differentiation between both of the research. When we take the example of media, then this particular area utilise most of the quantitative research methodology. 

गुणात्मक और मात्रात्मक शोध के दो बड़े विधि है जिसके द्वारा शोध के लिए ज़रूरी आंकड़े इकट्ठा किया जाता है। साथ ही साथ आंकड़ों का विश्लेषण भी इन दोनों के आधार पर किया जाता है। दोनों विधियों का प्रयोग अलग-अलग परिस्थितियों में होता है। दोनों के अपने सकारात्मक बिंदु हैं। साथ ही कुछ कमियां दोनों में है। अगर हम मीडिया जैसे क्षेत्र की बात करें तो यहाँ पर सबसे ज़्यादा मात्रात्मक शोध होता है। यह भी हो सकता है कि किसी क्षेत्र में दोनों की शोध विधियों का प्रयोग किया जा सके जा सकता है। और दोनों में से एक का भी प्रयोग किसी स्रोत के लिए हो सकता है। कुल मिलाकर दोनों की शोध विधियों का प्रयोग शोध के विषय और शोधार्थी के शिक्षा पर निर्भर करता है कि वह कौन सी विधि का प्रयोग करता है।साथ ही साथ जिस तरह से डाटा के आंकड़ों का भी संचयन करना है उसके आधार पर भी शोध की विधि निर्धारित होती है। अब हम एक्टर के अलग अलग दृष्टिकोण से दोनों विधियों को देखेंगे कि उसमें क्या खासियत है।






Approach to both of the research दोनों अनुसंधानों के लिए दृष्टिकोण 
Time taken by both of the research दोनों अनुसंधानों द्वारा लिया गया समय
Team needed by both the research दोनों अनुसंधानों के लिए आवश्यक लोगों की संख्या
Area of the research अनुसंधान का क्षेत्र
Data analysing tool used by both the research डेटा विश्लेषण उपकरण का दोनों शोध में प्रयोग
Resources needed for both the research दोनों शोध के लिए आवश्यक संसाधन
Intellect requirement for both the research दोनों शोधों के लिए आवश्यक बुद्धि का स्तर
Presentation of outcome by both research दोनों शोधों द्वारा परिणाम की प्रस्तुति
Public understanding of both the research दोनों शोधों की सार्वजनिक समझ
Contribution in change by both the research  दोनों शोधों द्वारा परिवर्तन में योगदान





Approach to both of the research- 

First of all, let me clear to you that both of the research has a different implication. When we have to measure something in litre, kilogram, number, then c research is used. Also when researcher has to analyse the data which is in number, figure, weight, volume then quantitative research is utilise. In simple sense quantity, research is a research where quantity is measured. Quantity is related to an any of the things for example if somebody is doing research in the field of media, then he can measure the number of people who are satisfied with some of the policy of government and on the basis of that outcome, he can prepare a bulletin. Post-poll and pre-poll are survey-based research. The outcome is based on qualitative research. 

Next talking about qualitative research this particular research is used where quality is involved. Where emotion has to be measured through the research. For example what is the qualities related to a patient who is who is suffering from any of the problem. These things has nothing to do with the number but this things are the expression of quality. What is the people reaction in a particular situation. So when the researcher has to know the quality e.g feeling, expression, emotion he use this search method. The subject which contain all of these factors like historical analysis, cultural analysis, language analysis and much more then he use the qualitative research. The benefit of the qualitative research is that through this, the researcher find out the quality related to any community, people, society, country.

दोनों अनुसंधानों के लिए दृष्टिकोण-

दोनों अनुसंधानों के लिए जो दृष्टिकोण हम अपनाते हैं उसमें नज़रिया साफ़ होना चाहिए। अगर नजरिया साफ़ और स्पष्ट नहीं होगा तो यह निर्धारण करना कि किस विधि का प्रयोग करें काफ़ी मुश्किल हो सकता है। लेकिन कुछ बातें हैं अगर उसे अच्छे से समझ लिया जाए तो मुश्किल जैसी कोई बात नहीं है। जैसे ही हमें किसी ऐसे चीज़ के बारे में पता करना है जिस का जुड़ाव संख्या, मात्रा, दूरी, क्षेत्रफल, वजन से हो तो वहाँ मात्रात्मक अनुसंधान का प्रयोग किया जाएगा। जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है मात्रात्मक यानी मात्रा से जुड़ा हुआ अनुसंधान। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस रिसर्च का खूब प्रयोग होता है। मतदान से पहले दिखाए जाने वाला रिसर्च  और मतदान के बाद जो रिसर्च मीडिया दिखाता है वह मात्रात्मक रिसर्च ही है। जिस मीडिया की भाषा में प्री-पोल और पोस्ट-पोल भी कहते है।

अगर गुणात्मक अनुसंधान की बात करें तो यह अनुसंधान उस परिस्थिति में काफ़ी काम आता है जहाँ पर गुण के आधार पर  जानकारी चाहिए होता है। गुण पर जानकारी से मतलब यह है कि अगर शोधार्थी  को यह पता करना है कि किसी समाज में संपन्नता के क्या आधार है तो वह गुणात्मक शोध के द्वारा ही पता करेगा। यही नहीं अगर शोधार्थी को यह पता करना है कि कोई बीमारी में किस-किस तरह की फ़ीलिंग आती है तो यह भी गुणात्मक शोध के द्वारा ही पता किया जा सकता है। गुणात्मक शोध ऐसी तमाम परिस्थितियों में सहायक है जहाँ पर गुण संबंधी जानकारी प्राप्त करना हो।  गुण से मतलब ख़ुशी, ग़म, अनुभूति, सकारात्मकता, नकारात्मकता, किसी पर प्रवृत्ति जैसे की चोरी, बलात्कार, इत्यादि जैसे नकारात्मक चीज़ों के बारे में भी गुणात्मक शोध बता सकता है कि ये सब क्यों हो रहे हैं। गुणात्मक शोध का महत्व इसलिए काफ़ी बढ़ जाता है क्योंकि यह एक ऐसी चीज़ को सामने लाता है जिसके बारे में बता पाना बहुत आसान नहीं है। 





Time taken by both of the research- 

The time taken by the qualitative and quantitative research is depend upon the topic chosen by the researcher as well as the sample area he has selected. In totality, it is depend upon the research area and research topic. But precisely if you talk about the time taken by both the research then of course, the quantitative research can be done in a very less amount of time. Because it has to do with the number so it can easily be done within a short span of time. That's why this particular research is highly popular in the media because they used to present the output result in very small amount of time. So you will see that there are lots of survey each and every day happening on the electronic media. They can ask you vote on this particular issue what you think about this issue and within an hour, they put the result on the screen that 60 or 80% people are in favour of this issue and so and so number of people are against the issue. 

Time taken by the qualitative research is comparatively higher than the quantitative research. The reason behind this is that the finding of the quality is not easy task. It takes long time to judge issue related to quality. For example, if anybody has to find out that why this community is violent in nature then he has to spend months and year to find out the reason behind this. So qualitative research of course need more amount of time then the qualitative research. This is the reason that qualitative research used to be done in very less amount by the people who are not passionate  about the research. Qualitative research needs, patience and passion to perform. Ordinary can't do this research. It needs lots of time and resources to perform this particular research.  

दोनों अनुसंधानों द्वारा लिया गया समय

किसी भी अनुसंधान में जो समय लगता है वह इस बात पर निर्धारित होता है कि अनुसंधान का विषय क्या है।अच्छा उस विषय से जुड़ा हुआ जो क्षेत्र है वह कितना वृहद है। ज़ाहिर सी बात है इन दोनों का महत्व सीधे-सीधे अनुसंधान के समय और संसाधन से जुड़ा हुआ होता है। अब रही बात गुणात्मक और मात्रात्मक रिसर्च में लिए गए समय के बारे में तो मात्रात्मक रिसर्च में गुणात्मक रिसर्च की तुलना में कम समय लगता है। हम जानते हैं कि मात्रात्मक रिसर्च का जुड़ाव मात्रा से हैं, गणना से है इसलिए इस रिसर्च को कम ही समय में अंजाम दिया जा सकता है। हम देखते हैं कि मीडिया पर आए दिन ऐसे अनुसंधान दिखाए जाते हैं जिसमें दर्शकों से पूछा जाता है कि आप इस नजरिये को कितना अपना समर्थन देते हैं और शाम तक आपको परिणाम दिखा दिया जाता है की 60% लोग इस नज़रिए के साथ हैं और इतने प्रतिशत लोग इस नज़रिए के ख़िलाफ़ है। यह अनुसंधान इसलिए मीडिया में काफ़ी प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि कम समय में ही आराम से कोई भी मीडिया हाउस इसके परिणाम को प्रदर्शित कर देता है। यही वजह है कि इस अनुसंधान को करने वाले लोग काफ़ी होते हैं जिन्हें परिणाम जानने की ज़ल्दी होती है और वह परिणाम मात्रा से जुड़ा हो। इसकी तुलना में अगर गुणात्मक अनुसंधान की बात करें तो इसमें काफ़ी समय लगता है। अगर उदाहरण के तौर पर लें तो अगर हमें यह पता करना हो कि कोई समुदाय हिंसात्मक क्यूँ है ?  तो यह पता करने के लिए महीनों और सालों लग सकता है। यही वजह है कि गुणात्मक अनुसंधान करने वाले शोधार्थी काफ़ी कम संख्या में होते हैं। यह अनुसंधान वही करता है जिसमें शोध के प्रति दीवानापन और समर्पण होता है। इस शोध में समय और संसाधन की अधिकता ही इस शोध की लोकप्रियता कम होने का कारण है। 





Team needed by both the research-

Starting with the quantitive research, you better know that this particular research is performed in the large area. That is the reason for which it needs good amount of people to perform the research. Not necessary that each and every people should be very much familiarise with the research. Even with a small knowledge of research they can help in the task. Only the team leader need to be expertise over the research topic and area and he can lead the research. We better know that in the quantitive research, there needs to collect the data regarding to quantity so it is easier to cover large area with good team member. 

Next discussing about qualitative research then we have knowledge that qualitative research is performed in a small area. The research is of serious nature so only the person with full experience with the research can be the part of team. Even one person can perform the research in this research. The reason behind this is that the trait which seems to be positive to one researcher can be negative for another researcher. So the chances of class between understanding can be there. So in qualitative research, it is observed that one person is there to perform it. But if the topic is such that a team can work then the team can also be seen doing this research. 

दोनों अनुसंधानों के लिए आवश्यक लोगों की संख्या-

शुरुआत अगर मात्रात्मक शोध से करें तो इस शोध में ज़्यादा लोगों की ज़रूरत पड़ती है। इसकी मूल वजह यह है कि शोध क्षेत्र काफ़ी बड़ा होता है और बड़े क्षेत्र में जब हम शोध कार्य को करते हैं तो बड़ी टीम की ज़रूरत होना स्वाभाविक है। जो टीम होती है उसमें ज़रूरी नहीं है कि हर व्यक्ति को शोध के बारे में काफ़ी गंभीर जानकारी हो। हो सकता उसमें से कई लोगों को मात्र सहायता के लिए रखा गया हो और वह गणना करने में सहायता प्रदान करें। हाँ यह ज़रूरी है कि वह जिसके अंदर में शोध कर रहे हैं उसे शोध के बारे में संपूर्ण जानकारी हो। 

इसकी तुलना में गुणात्मक शोध की बात करें तो यहाँ पर शोध क्षेत्र छोटा होता है। गुण का पता करना इतना भी आसान और सरल कार्य नहीं है। गुणात्मक अनुसंधान में इसलिए काफ़ी छोटा टीम होता है। कई मामलों में हो सकता है कि एक ही व्यक्ति गुणात्मक शोध अंजाम दे रहा हो। ऐसा इसलिए क्योंकि हो सकता है जो बात एक व्यक्ति को गुण के रूप में समझ में रहा हो दूसरे व्यक्ति के लिए वह अवगुण है। इस शोध में इसलिए ज़्यादातर मामलों में एक ही व्यक्ति शोध को अंजाम तक ले के जाता है। जिससे की अध्ययन के क्षेत्र में टकराव होने की संभावना ना रहे।





Area of the research- 

The area of research is directly related to the time and resources that will be needed to perform the research. Whenever we talk about the area of research and then of course, the quantitive research need less time and resource to perform. The research that is performed in the quantitative research needs less amount of time and resources. The purpose of the quantity of research is to measure something and it needs less amount of time. So within this short span of time and resource, the quantity research can performed in large area. For example we can count the number of the people in any of city like Patna those who have car with them and it can be performed within a week with good team member. So it is observed that the area of quantitive research is comparatively bigger than the qualitative research because it can be done easily. 

When the quality related things has to be researched, then it is very tough task. It can be perform by people who has a good level of knowledge and experience related to that subject. So qualitative research need to focus the area where he has to find quality. So whenever the area of research is concerned, then qualitative research need to be very precise in defining his area. Even a person can be the area of qualitative research or a village where any particular community leaves. It can also be the area of qualitative research. Even with the smaller area it takes long time to find out the result. This is the reason that this particular research is considered as a serious one. 

अनुसंधान का क्षेत्र-

अनुसंधान के क्षेत्र से सीधा समय और संसाधन जुड़ा होता है।जितना बड़ा क्षेत्र होगा उतना ही ज़्यादा समय और संसाधन की ज़रूरत होगी। अगर हम गुणात्मक और मात्रात्मक अनुसंधान की बात करें तो मात्रात्मक रिसर्च का क्षेत्र बड़ा हो सकता है। बावजूद उसके उसमें कम समय और संसाधन की ज़रूरत पड़ सकती है। उदाहरण के तौर पर अगर हमें यह पता करना होगा कि पटना में लोगों के पास कितनी संख्या में कार है तो यह कम समय में ही पता किया जा सकता है। जबकि क्षेत्र काफ़ी बड़ा पूरा शह शहर है। मात्रात्मक शोध में इसीलिए जो शोध-क्षेत्र होते हैं वह काफ़ी बड़े होते हैं। उसे कम ही समय और संसाधन में पूरा किया भी जा सकता है। 

इसकी तुलना में अगर गुणात्मक अनुसंधान की बात करें तो गुणात्मक अनुसंधान के क्षेत्र काफ़ी स्पष्ट होते हैं और छोटे होते हैं। इससे यह फ़ायदा होता है की शोधार्थी भी आराम से उस क्षेत्र के गुण को पता कर सकता है। गुणात्मक शोध में कई बार एक व्यक्ति भी शोध के क्षेत्र हो सकते हैं। एक छोटा सा गाँव जिसमें कोई समुदाय रहता है वह भी शोध का क्षेत्र हो सकता है। जबकि यहाँ भी अच्छी समय देना पड़ेगा भले ही क्षेत्र कितना भी छोटा है। यही वजह है कि गुणात्मक शोध एक गंभीर शोध माना जाता है और उसमें समय और संसाधन की अधिकता होती है। 





Data analysing tool used by both the research- 

The use of tools makes the research move fast and accurate. Tool can be software, app, website, etc. The benefit of using the tool in the research is that even other can also use the tool if he is provided enough training. This can provide the result in a very fast way. It can also give you different viewpoint related to the data itself. The tool will analyse the result what the data has been provided to it. Quantitive research use various tools to analyse and process the data. That is the reason due to which quantitive research used to present the result in vary small span of time with great precision. SPSS, Excel can be the tool to process and analyse the data. 

Now talking about qualitative research then here no as such tool is applied. The reason behind this is that no tool has been made to process the quality and analyse the quality. How it is possible by any software to analyse the reason behind violence by any community. It can give you the result which has been researched earlier, but it cannot process the quality of people and community. Also, qualitative research is highly based upon the way the researcher used to process and analyse the data. So it is a personal specific viewpoint regarding any subject. So in qualitative research no tool is used or applied. It is only researcher who used to perform the whole analysis manually. This is the reason due to which qualitative research needs lot of time and effort to find out the result. 

डेटा विश्लेषण उपकरण दोनों शोध द्वारा उपयोग किया जाता है-

शोध में उपकरणों का प्रयोग शोध को गति प्रदान करता है। साथ ही साथ इसमें गलती होने की संभावना कम जाती है। इसका फ़ायदा यह भी है कि कोई दूसरा भी उपकरण का प्रयोग करके वही परिणाम प्राप्त कर सकता है। मात्रात्मक शोध में ज़्यादातर उपकरणों का प्रयोग होता है जो की आंकड़ों के आधार पर परिणाम दे देते हैं। यही वजह है कि मात्रात्मक शोध में ज़्यादातर उपकरणों को प्रयोग में लाया जाता है। उपकरण के तौर पर कई वेबसाइट, ऐप है या कुछ और हो सकता हैं।एसपीएसएस, एक्सेल जैसे उपकरण काफ़ी प्रयोग में लाए जाते हैं परिणाम को प्राप्त करने के लिए।

अगर बात गुणात्मक शोध की करें तो यहाँ पर उपकरणों का प्रयोग नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब तक कोई भी उपकरण नहीं बना है जो गुण को पता कर लें। अगर किसी समुदाय में काफ़ी हिंसा है इसके पीछे का सत्य कोई उपकरण नहीं बता सकता है। गुणात्मक शोध में इसलिए शोधार्थी कि वह आधार है जो तमाम तथ्यों को खोज कर सामने लाता है। तमाम आंकड़ों का मूल्यांकन मानवीय तरीक़े से ही करना होता है। यही वजह है कि गुणात्मक शोध में काफ़ी समय की ज़रूरत होती है। इस शोध में परिणाम भी शोधार्थी के अनुसार ही प्राप्त होता है।





Resources needed for both the research-

When the question about the resources needed for the research is concerned, then quantitative research need less amount of resource compare to qualitative research. The quantitive research is less resource incentive, then other one. This is the reason behind the popularity of quantitative research. This is research also highly used for different sector only due to this reason only. It needs less amount of resource and time to perform. The resource can be in the nature of man, money and material.

Compare to quantitative research qualitative research needs more amount of resources to perform. The reason behind is that this research used to take a long interval of time and to support this long format of time more resource is needed. Also, qualitative research is also in-depth type of research and this is the reason due to which more resource needed. In this research, the researcher has to spend long interval of time in the field in natural set up and this is the reason due to which this research needs investment of resources. This is the reason behind which this resource is not so used in different sectors.  

दोनों शोध के लिए आवश्यक संसाधन-

मात्रात्मक शोध की अगर बात करें तो इसमें तुलनात्मक रूप से संसाधन की कम ज़रूरत होती है जितना ही गुणात्मक शोध में ज़रूरत पड़ती है। हम जानते हैं कि मात्रात्मक शोध में कम समय लगता है और यही वजह है कि संसाधन की भी आवश्यकता कम होती है। संसाधन कई तरीक़े के हो सकते हैं। मानव, पैसा और वस्तु संसाधन के तौर पर उपयोग में लाए जाते हैं। यही वजह है कि मात्रात्मक शोध कई क्षेत्रों में काफ़ी लोकप्रिय है क्योंकि इसमें कम संसाधन का प्रयोग होता है। 

अगर हम गुणात्मक शोध की बात करें तो यहाँ पर संसाधनों का ज़रूरत मात्रात्मक शोध की तुलना में ज़्यादा होता है। इसके पीछे ही वजह सीधा और सरल है की यहाँ पर समय ज़्यादा लगता है इसलिए ही संसाधन भी ज़्यादा लगता है। गुणात्मक अनुसंधान में शोधकर्ता को भी फिल्ड में काफ़ी लंबे समय तक रहना पड़ता है और इसके लिए भी संसाधन की आवश्यकता होती है। 





Intellect required for both the research- 

Both the research has different purpose and usages. Based upon the purpose and use both needs lots of intellect and talent to perform. But if you have to say on comparative analyses, which one needs less intellect and talent to do the research then of course this is quantitative research which need less amount of intellect and talent to do it. One of the major reason for this is that in this research different tools can be used to perform the research. That's why no as such amount of talent and experience is needed to do this research as is needed by qualitative research. 

Now talking about qualitative research then we better know that each and every thing is done manually in this research that is the reason behind more talent and expertise to perform this research. A high level of experience is also very much beneficial to do this research. Only with the proper intellect, talent and experience the researcher can bring out meaningful results for the society. 

दोनों शोधों के लिए बुद्धि की आवश्यकता है-

जहाँ तक सूझ-बूझ और बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है तो होता स्पष्ट है कि मात्रात्मक शोध में बुद्धि का वह स्तर नहीं चाहिए जो की गुणात्मक शोध में चाहिए। मात्रात्मक शोध में कई कार्य उपकरण कर देते हैं। जिससे की शोध में ज़्यादा बुद्धि और समझ की ज़रूरत नहीं होती है। इसका यह क़तई मतलब नहीं है कि शोधकर्ता को अनुभव नहीं होना चाहिए या उसे शोध की समझ नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर तुलनात्मक दृष्टिकोण से बात करें तो इसमें कम बुद्धि से भी शोध को अंजाम दिया जा सकता है।  

गुणात्मक शोध में जो शोधकर्ता है उसे अच्छी ख़ासी ज्ञान होना चाहिए शोध के बारे में।साथ ही साथ शोध-विषय के बारे में काफ़ी अनुभव होना चाहिए। तभी वह कुछ अच्छा निष्कर्ष ले के सकता है।





Presentation of outcome by both research- 

Once the quantitative research is being done in successful manner, then its result can be presented in very simple and understandable manner. It result can be printed in graphical form, pictorial form, tabular form or in other manner. which looks attractive and immersive. Even bar graph, pie chart and different representation can be used. 

When the presentation of outcome is related to the qualitative research, then its result cannot be presented as in the case of quantitative research. In this research, the outcome is presented in narrative form. It means the research is presented in descriptive manner. Means the whole process will be described and the outcome will be described. It will be in the shape of a story telling. The proper knowledge of word and language is needed to present the outcome of this research. So to understand the outcome of qualitative research, one needs to read the whole narrative for better understanding of the outcome. 

दोनों शोधों द्वारा परिणाम की प्रस्तुति- 

शोध के ख़त्म होने पर जब परिणाम को प्रस्तुत करने का सवाल आता है तो मात्रात्मक शोध के परिणाम को हम काफ़ी आसान, आकर्षक और दृश्यात्मक रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं। मात्रात्मक शोध के परिणाम को तस्वीर, ग्राफ, टेबल बनाकर प्रस्तुत किया जा सकता है। जो समझने में काफ़ी आसान और आकर्षक भी होता है। अगर बात गुणात्मक शोध की करें तो यहाँ पर हम परिणाम को व्याख्या के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसका मतलब है कि परिणाम को कहानी की तरह लिखकर शोधार्थी दूसरों को बताता है। इसके लिए शोधार्थी को शब्द और भाषा की समझ होनी चाहिए। इसके अपने फ़ायदे हैं की शोध की गंभीरता से लोग रूबरू हो पाते हैं।  





Public understanding of both the research- 

The purpose of each research is definitely different one. The presentation of the result in both of the research is also different one. So the public will understand both of the research in a different way also. The quantitative research is easily understand by the public. The quantitive research is present in different manner with the help of picture, graph, table so it is easily understand by the public without any confusion. This research is presented in very easier and attractive manner manner so people easily understand this research. Compare to the quantitative research if we talk about qualitative research then this research present the result in narrative way. It gives the detailed knowledge related to the research. But the lay man and the common people are not able to understand it in easier manner. So it is not so much popular in between the common people. The person who has learned background they used to understand the result of qualitative research. This is the reason the media use less the qualitative research it use maximum quantitative way of research. 

दोनों शोधों की सार्वजनिक समझ- 

दोनों ही शोध की अपनी खासियतें हैं। दोनों शोध के परिणाम को अलग-अलग तरीक़े से प्रस्तुत किया जाता है। मात्रात्मक शोध के परिणाम को तस्वीर, टेबल, ग्राफ़ इत्यादि तरीक़े से रखा जाता है। यही वजह है कि मात्रात्मक शोध के परिणाम को लोग आसानी से समझ जाते हैं। साधारण सोच-समझ वाला व्यक्ति भी मात्रात्मक शोध के परिणाम को आसानी से समझ सकता है। यही प्रमुख वजह है कि मीडिया में सबसे ज़्यादा मात्रात्मक शोध के परिणाम का प्रयोग किया जाता है। जो कम समय में, कम ख़र्च में हो भी जाता है और लोगों को भी समझ में आसानी से जाता है। इसकी तुलना में अगर गुणात्मक शोध की बात करें तो यहाँ पर परिणाम को कहानी और दूसरे अन्य तरीक़े से रखा जाता है। जो की आम लोगों के समझ में बहुत आसानी से नहीं आता है। गुणात्मक परिणाम को समझने के लिए लोगों को पढ़ा-लिखा और भाषा का ज्ञान आना ज़रूरी है। तभी वह गुणात्मक के परिणाम को समझ पाएगा। गुणात्मक शोध का परिणाम इसलिए ही ज़्यादा लोकप्रिय नहीं होता है और मीडिया में इसका प्रयोग भी काफ़ी कम होता है। मीडिया को पता है कि ज़्यादातर लोग इसके परिणाम को नहीं समझ पाएंगे। गुणात्मक शोध में समय और  संसाधन भी ज़्यादा लगता है इसलिए यह शोध कम लोकप्रिय है।





Contribution in change by both the research- 

Research are meant for change and positive development in the society. But when we talk about permanent and long-lasting change in the society and then quantitative research is behind the qualitative research. It means that quantitative research is meant for knowledge and information related to issue, but it is of not so serious nature to bring permanent and long-lasting change in the society. Already it is mentioned that this research is highly used in the media and we know that within an hour next research result is shown on the media. So result of quantitative research is temporary in nature, not long-lasting in nature. It helps to make people understand on any subject, but it did no compelled them for change. It did not provide in-depth knowledge and analyses related to any subject. Also quantitative research used to not give enough time to the people to act on it. The outcome of this type of research is projected on daily basis in front of the public. The reason due to which people are not serious about outcome of this research.

Whereas the qualitative research present the result in very in-depth and descriptive manner. The people used to take this research in a very serious way. This is a reason behind this that only intellectual people used to go through the result of this research. So there is lot of discourse related to the outcome of qualitative research. Qualitative research used to bring long lasting and permanent change in the society. The research used to take long time and also it gives long time to people to act on it. So this research is of serious nature. 

  

दोनों शोधों द्वारा परिवर्तन में योगदान- 

हर शोध का ये उद्देश होता है कि वह समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाए। उसके द्वारा जो निष्कर्ष लाया गया है उसपे ख़ूब चर्चा-परिचर्चा हो। अगर तुलनात्मक दृष्टि से दोनों शोध में तुलना करें तो मात्रात्मक शोध के परिणाम का दीर्घकालीन परिवर्तन में कम योगदान होता है। यह शोध काफ़ी जल्दी में हो जाता है। इस शोध का उद्देश्य ज़्यादातर लोगों को किसी विषय के बारे में सूचना या ज्ञान उपलब्ध कराना है।मीडिया पर हर रोज़ इस शोध के ज़रिए कई वैचारिक बातें बतायी जाती है और दिन ढलते ही उसका स्थान दूसरी बात ले लेती है इसलिए शोध को जितना कम समय में अंजाम तक पहुंचाया जाता है उतना ही कम समय लोगों को इस शोध के बारे में सोचने या विचारने के लिए भी मिलता है। अत्याधिक मात्रा में मात्रात्मक शोध के परिणाम दिखाए जाने से इसका असर लोगों पर दीर्घकालीन रूप से कम होता है। परिवर्तन में स्थायी बदलाव के रूप में इस शोध के परिणाम का कम महत्व है। 

इसके तुलना में अगर गुणात्मक शोध के परिणाम की बात करें तो हम जानते हैं कि यह शोध काफ़ी लंबे वक़्त में और ज़्यादा संसाधन का प्रयोग करके किया जाता है। इसके परिणाम को भी कथानक के रूप में रखा जाता है। यही वजह है कि यह शोध पढ़े-लिखे लोगों के द्वारा समझा और पढ़ा जाता है। निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि यह शोध परिणाम को इस तरह से रखता है कि उसका असर बदलाव में व्यापक तौर से होता है। लोगों को काफ़ी समय भी मिलता है कि इस शोध के बारे में पढ़ें, सोचे, समझे और फिर निर्णय लें। इस तरह के शोध भी काफ़ी कम होते हैं इसलिए इस शोध का असर भी काफ़ी लंबे समय तक लोगों पर रहता है। ज्ञान के जो नए धरातल यह शोध लेकर आता है वह भी काफ़ी गहराई से चीज़ों के बारे में बताता है।साथ ही साथ कई नज़रिया से चीज़ों का मूल्यांकन भी करता है। 





And at last it can be said that qualitative and quantity research has its own vision. Both has some of the positive aspects with them. It depends upon the researcher which particular way he goes. According to the topic, resource and time the methodology is selected. If needed both can be used in same research.  

कुल मिलाकर गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों शोध के अपने उद्देश है। दोनों ही शोध की कुछ कुछ सकारात्मक पक्ष है। विषय, समय और संसाधन के हिसाब से दोनों में से किसी एक का चुनाव शोधार्थी कर सकता। शोधार्थी को अगर दोनों ही शोध के बारे में जानकारी है तो वह ज़रूरत के अनुसार किसी एक का चुनाव आसानी से कर सकता है। अगर ज़रूरत महसूस हो तो  दोनों का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है। शोध को अंजाम तक ले जाने के लिए दोनों ही शोध के रास्ते हैं इस पर शोधार्थी चल कर निष्कर्ष तक पहुँचता है। ज़रूरत के हिसाब से दोनों में से किसी एक का प्रयोग किया जा सकता है। 


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