How electronic media is criticised based upon the culture? संस्कृति के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कि हम किस प्रकार आलोचना कर सकते हैं?

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How electronic media is criticised based upon the culture? 
संस्कृति के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कि हम किस प्रकार आलोचना कर सकते हैं?


The criticism of electronic media happens on the various parameter. The criticism of media is done based upon the ethical basis, based upon the political or social basis. The content which is presented over the electronic media is also criticised based upon the cultural parameters. Of course when the content of the electronic media is criticised on the cultural basis. Culture is very important factor culture represents the way the society is. Culture is the way people used to communicate within each other. Culture is an important factor. Culture is also related to the aim and aspiration of the people. Culture is also the part of fooding  and dinning the people used to have in their own life. So culture is a holistic thing which contains society, family and individual itself. So dealing with the culture the media should maintain a balance approach because it is also related to identity itself. The critics of media on the basis of culture can be done on the following points. 

जब भी हम संस्कृति की बात करते हैं तो संस्कृति से आशय एक वृहद सोच और समझ से जुड़ा होता है।संस्कृति के अधीन ही समाज, परिवार और व्यक्ति आता है।संस्कृति में वह सब कुछ है जो हमारी सोच से जुड़ा होता है।संस्कृति में हम भाषा की बात करते हैं संस्कृति के तहत ही हम मिलना-जुलना, खाना-पीना और हम जीवन में जो होना चाहते हैं वह भी संस्कृति का ही हिस्सा है। इस तरफ़ देखें तो संस्कृति का हिस्सा समाज का हर कतरा है। संस्कृति के बिना कुछ भी नहीं। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का यह दायित्व बन जाता है कि वह संस्कृति को इस तरह से अपने विषय वस्तुओं में डाले की उसके साथ न्याय हो। संस्कृति से जुड़े तत्वों को सही और संतुलित तरीक़े से दिखाए। ऐसा हो कि किसी संस्कृति को बहुत उच्चतर दिखा दे और किसी संस्कृति को बहुत निम्नतर दिखा दें। यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि संस्कृति लोगों के पहचान का भी हिस्सा है। मीडिया को संस्कृति से सम्बंधित कुछ चीज़ दिखाना हो तो काफ़ी सावधानी बरतनी चाहिए। गाहे-बगाहे हम ऐसे विषय वस्तु मीडिया पर देखते हैं जो कि बिलकुल भी सांस्कृतिक आधार पर जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आलोचना सांस्कृतिक आधार पर निम्न बिन्दुओं के द्वारा कर सकते हैं। 



Cultural Imperialism सांस्कृतिक साम्राज्यवाद
Ignoring local culture स्थानीय संस्कृति की उपेक्षा
Homogenisation factor समरूपता कारक
Misrepresentation मिथ्या निरूपण
Promoting affluent culture समृद्ध संस्कृति को बढ़ावा देना
Maintain stereotyping रूढ़िबद्धता बनाये रखना




Cultural Imperialism-

The charges are levelled against the electronic media that they used to promote western values and western culture. They used to show the western culture as more advance one compare to the local and Indian culture. The western style of talking the western style of dressing the western style of putting our sound in such a way that they are far far superior than our own culture. This is nothing but example of cultural imperialism which is going on in Indian media. Due to cultural imperialism, the psychology of people or also not also get affected and they feel that they were lacking in the civic sense and on the basis of development parameter. They feel uncomfortable to communicate with the western people. They consider their history their society as very rich, one considered to their own native history and society. So this is the negativity of cultural imperialism which were promoted by Indian electronic media. 

सांस्कृतिक साम्राज्यवाद- 

भारतीय मीडिया पश्चिम के राष्ट्रों के रहन-सहन, खानपान, जीवन पद्धति को काफ़ी उच्चतर दिखाता है।उसकी तुलना में भारतीय समाज और यहाँ की संस्कृति को निम्नतर दिखाता है।एक तरह से कहें तो पश्चिम के संस्कृति का गुणगान भारतीय मीडिया में ख़ूब होता है।यही वजह है कि वहाँ के कार्यक्रमों का फ़ोटो कॉपी यहाँ पे प्रस्तुत किया जाता है। जैसे की बिग बॉस को ले लें या दूसरे ऐसे कार्यक्रम का हम उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं। यह सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का विशुद्ध उदाहरण है।यानी कि हम यह मान बैठे हैं कि पश्चिम के राष्ट्र की सोच और वहाँ का समाज हम से कई गुना आगे है। इस तरह के कार्यक्रम का असर भारतीयों के मनोदशा पर होता है। भारतीय सोचते हैं कि विकास के तमाम पैमानों पर पश्चिम के राष्ट्र काफ़ी आगे हैं और हम काफ़ी पिछड़े है। सांस्कृतिक साम्राज्यवाद देश, समाज और व्यक्ति के स्वतंत्र विकास में बाधक है। 





Ignoring local culture-

When any body will analyse the content which is presented over media then he will come to know that he used to celebrate the mother day, father day in a very glamorous way, which is nothing but representation of West, but it ignore local culture, local identity. The festival related to the marginalised, community, tribals, never get a space on the electronic media. We better know that India is very diverse country here lots of things are there which can be presented over the electronic media, but they never do so. Here, the problem lies the problem related to discrimination over the selection and rejection of content. 

स्थानीय संस्कृति की उपेक्षा-

इंडियन मीडिया की विषयवस्तु का जब आप अवलोकन करेंगे तो आप पाएंगे कि इस में मदर डे और फ़ादर डे तो काफ़ी धूमधाम से मनाया जाता है परंतु वह स्थानीय पर्व-त्योहार को वह स्थान नहीं देता है जो उसे मिलना चाहिए। जनजातियों के कई पर्व-त्योहार है जिसके बारे में ठीक से लोगों को पता तक नहीं है। दिक़्क़त यह नहीं है कि आप पश्चिम के चीज़ों को काफ़ी बढ़ा चढ़ाकर दिखाते हैं दिक़्क़त यह है कि आप अपनी चीज़ों को नकार देते हैं। स्थानीय कल्चर में कई ऐसी चीज़ें हैं जो लाजवाब है जिसमें भासा हो सकती है, खानपान हो सकता है, कारीगरी हो सकती है और जाने ऐसे कितने तत्व है जिनके बारे में चर्चा करना भी मुमकिन नहीं है और इन सारी चीज़ों को नकार कर हम इसे दूसरे पर देश के कल्चर को ज़्यादातर महत्व देते है। 





Homogenisation factor-

We know that India is a diverse country. This diversity can be seen in clothing, fooding, language and on various background. Indian media represent the whole India by few things that is been manufactured by the brand. They are the identity of whole country and this is nothing but a homogenisation factor which is done by the Indian media. Due to this fact local identity and differentiation did not visualised on the electronic media. The children's and young generation remain blank regarding their own culture and identity. They think that only the dress, food and  language that is presented over the electronic channel, are superior one.  Rest of are of no use.

समरूपता कारक-

भारतीय मीडिया भारत की संस्कृति को इस प्रकार से दिखाता है जैसे कि उसमें कोई विविधता हो ही नहीं। भारत भूमि विविधताओं से भरा है। यह विविधता हर क्षेत्र में है।खानपान, भाषा, पहनावा, पूजा पद्धति जैसे अनेक आधार है जिसके आधार पर भारत में संस्कृतियों का निर्माण हुआ है।कुल मिलाकर कहें तो भारत की विविधता ही इसकी पहचान है। मीडिया में सीमित संस्कृति को ही दिखाई जाती है।ऐसा लगता है मानो पूरा देश उसी तरह के कपड़े, उसी तरह के खाने, उसी तरह की बोलचाल  कर रहा हों। इसके पीछे कई ब्रांड है जो कुछ ख़ास वस्तुएँ बनाते हैं और मीडिया पर उनका विज्ञापन चलता है और वे चाहते हैं कि इसी तरह की चीज़ हर आदमी फ़ॉलो करें जिससे कि उसे उत्पादन में ज़्यादा मेहनत करना पड़े।कायदे से भारतीय मीडिया को भारत की हर तहज़ीब को जगा देना चाहिए। कि सिर्फ़ कुछ सीमित पहचान को ही आगे बढ़ाना चाहिए। 





Misrepresentation- 

Indian media represents the local identity and culture. They depict the figure of some section of the society, especially marginalised, woman in a very wrong way. They represent some of the religion, some of the caste in not appropriate manner. This is nothing but a sort of misrepresentation by the media. This is the factor due to which this section of society feels unrepresented in Indian media. Unrepresentation is an issues but it became bigger when they are misrepresented. It means people are not able to know this community in a correct way. They have a wrong impression related to this section of society and which is not good for the equality and fraternity of the country. Definitely misrepresentation is the issue which needs to be add address by the media.

मिथ्या निरूपण-

मीडिया पर स्थानीय समाज और संस्कृति को दिखाया जाता है। कई बार स्थानीय पहचान और संस्कृति को इस तरह से दिखाया जाता है जो की पूरी तरह से उनका प्रतिनिधित्व करता नहीं होता है।मीडिया कई वार स्त्रियों की छवि को, कुछ धर्म को लेकर, कुछ जातियों को लेकर इस तरह की ख़बरें दिखाता है जिसकी उनकी छवि सही नहीं बनती है।दिक़्क़त ये नहीं है कि उनकी छवि ख़राब होती है दिक़्क़त यह है कि लोगों में उनकी सही छवि के बारे में जानकारी नहीं होती है और लोग उनको उसी नज़रिए से देखते हैं जो मीडिया दिखाता है। यह लोकतांत्रिक मूल्य बंधुता और समरूपता का उल्लंघन है।मीडिया को इस मामले में संवेदनशील होना चाहिए और और सही से सभी तबकों को उचित स्थान देना चाहिए। 





Promoting affluent culture-

Generally, when anybody will observe media, then they will found that media used to present the content which are based upon metros and upper middle class and upper-class people. They are part of affluent culture. They know their rights. They are empowered enough to fight their cause. They are educated enough to raise their issue. In spite of all this positivity, media also promotes their cause, issue and grievances. This is nothing but a sort of promoting affluent culture. The people who are empowered enough to fight their own course. In spite of that they get help from the media. In this respect media did not pay their attention to the marginalised section of society, lower middle class and lower class people. Media did not raise their issue, event don't pay attention to their struggle of life. This is again disparity done by the media.  

समृद्ध संस्कृति को बढ़ावा देना-

मीडिया का बड़ा वर्ग केवल महानगरों से ख़बरों को दिखाता है।यह ख़बर उच्च मध्यम वर्ग, उच्च वर्ग से संबंधित होते हैं।ग़ौरतलब है कि यह वर्ग पढ़ा लिखा वर्ग है या अपनी मुद्दों को उठाना जानता है।यह आत्मनिर्भर वर्ग है बनिस्पत इसकी मीडिया भी इसी वर्ग की वकालत करता हुआ दिखता है। जबकि मीडिया उन लोगों के मुद्दे और उन लोगों की ख़बरों को नकारता है जिनको सही में मीडिया की ज़रूरत है।निम्न मध्य वर्ग, निम्न वर्ग से जुड़े मुद्दे और विषय वस्तु मीडिया पर कभी नहीं उस तरह से जगह बना पाते हैं जिस तरह से समृद्ध वर्ग से जुड़ी बातें दिखाई जाती है। इस तरह से मीडिया एक समृद्ध संस्कृति को ही आगे बढ़ाने का काम करती है। उस संस्कृति और पहचान को नकार देती है जिसमें लोग तो बहुत है पर वो समृद्ध नहीं है। 





Maintain stereotyping-

Media depict some section of religion, society without any change. Years and years media represent some religion, people, society as if that they have not changed. They are same as they were years back. This is nothing but stereotyping  this community in same manner. The stereotype image that is being presented by the media in front of the people are basis for injustice and inequality faced by this committee. They faces discrimination and prejudice from other section of people. This is all due to the image that is telecasted by the media related to this people. This is a big problem related to the electronic media.

रूढ़िबद्धता बनाये रखना-

सालों बीत जाने के बाद भी मीडिया किसी ख़ास जाति धर्म संप्रदाय के लोगों को उसी तरह से दिखाता है जैसे की वो सालों से दिखाता रहा है। ऐसा लगता है मानो समय तो बीत रहा पर उन में परिवर्तन नाम का कोई चीज़ नहीं है आज भी उसमें वही समस्या है या उनके बीच वही नज़रिया क़ायम है जो सालों पहले था। इस तरह मीडिया जो है वह रूढ़िवादिता को बरकरार रखता है। किसी ख़ास संप्रदाय, धर्म के  लोगों से जुड़ा हुआ। एक तरह से यह प्रवृति परिवर्तन को नकारना है जो कि सतत् और स्वाभाविक है समय के साथ जो होता ही होता है। भारतीय मीडिया को चाहिए कि परिवर्तन को स्वीकार करें और जो सकारात्मक चीज़ें इन समाज के बीच हुई है उन्हें भी सामने लेकर आना आना चाहिए।इस तरह के अगर छवि को मीडिया दिखाता है तो इसके आधार पर ही जो समाज समृद्ध है, ताक़तवर है वह इस समाज के साथ भेदभाव या ग़ैर सम्मानजनक तरीक़े से पेश आता है।






At the last it can be said that media needs to become more sensitised towards the marginalised and peripheral section of the society. Only then the complete picture of Indian culture will be represented in the Indian media. Otherwise Indian media will be present only a part of Indian culture which leaves in metros and big cities. If Indian media wants acceptability and popularity in between the whole India, then he has to become more diverse to accept the reality.  

अंत में अगर मीडिया चाहती है थी उसकी स्वीकार्यता और उसकी लोकप्रियता है भारतीय समाज में और बढ़े, लोग उसे और पसंद करें तो उसे पूरे समाज को सही और संतुलित तरीक़े से दिखाना चाहिए। भारतीय संस्कृति और भारतीय लोगों के पहचान को महत्व देना चाहिए।साथ ही साथ यहाँ से जुड़े मुद्दे, यहाँ की समस्या , को प्रमुखता और मुखरता के साथ उठाना चाहिए। शहरों से निकलकर उसे दूर प्रदेश के क्षेत्रों के लोगों को भी मंच देना चाहिए। 










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