What is the ethical criticism of electronic media? इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की नैतिक आलोचना क्या है?

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What is the ethical criticism of electronic media?

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की नैतिक आलोचना क्या है?


Whenever we are discussing about electronic media, then this particular media comes under the section of mass communication. The power and potential to reach the masses is tremendous related to electronic media. If such an ultimate power is given to any of the medium then of course there is the chances of some of the malpractices. The ethical consideration of the content over mass media that is electronic electronic media is it self is really a important question? Electronic media can we criticise on the basis of ethical background by the following head head.

नैतिकता एक ऐसा विषय है जिसकी मापदंडों से शायद ही कोई बचा है। समाज का हर आदमी नैतिकता से जुड़ा होता है।जब समाज का हर व्यक्ति नैतिकता से बंधा होगा तो भला मीडिया कैसे इससे बच सकता है।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी नैतिकता के सामान नियम लागू होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कई ऐसे विषय वस्तु है जिनका मूल्यांकन नैतिक मूल्यों के आधार पर किया जा सकता है। नैतिक आधार वह आधार है जिससे समाज की तमाम चीज़ों को हम तौलते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि नैतिकता कहीं लिखा हुआ नहीं होता है।जैसे की संविधान के साथ है उसके आधार पर हम किसी को क़सूरवार ठहराह  सकते हैं। उस पर कोर्ट में मुक़दमा भी चलाया जा सकता है। नैतिक नियमों के साथ ऐसा नहीं है। यह कहीं भी लिखित नहीं होती है बल्कि समाज सामूहिक तौर पर नैतिकता के पैमाने तय करता है।

 


नैतिकता के मानक पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विषय वस्तु को हम निम्न आधार पर जाँच सकते हैं- 


  • Privacy violation (निजता का हनन)-
  • Fake news (फेक न्यूज)
  • Presenting the content without crosschecking (बिना जांचे-परखे सामग्री प्रस्तुत करना)
  • Presenting the substandard content (मानक विषय वस्तुओं को प्रस्तुत करना)
  • Promoting sensation (सनसनी को बढ़ावा देना)
  • Violence (हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना )
  • Promoting the consumerism culture(उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देना) 
  • Desensitising people(संवेदना विहीन समाज का निर्माण) 
  • Promoting obscenity and vulgarity(नग्नता और अश्लीलता को बढ़ावा देना)




Privacy violation-  

Privacy is something which is very important for individual. It is related to the personal secrecy. It may be related to celebrity, politician, social worker, administrative officer or anybody else. The ethical issue related to the media is that media for the sake of selling the content invade the privacy of celebrity or of any background. We observe that such content becomes viral within a fraction of second. So the charges levelled against the media that they breach the privacy of anyone for the sake of virality  of message. Again, this is not a good practice from the ethical point of view.

निजता का हनन- 

निजता एक ऐसी विषय वस्तु है जो निहायत ही किसी की जीवन का निजी पक्ष हो सकता है।निजता का जुड़ाव है किसी की जीवन की क्रिया कलाप या उसका दिन प्रतिदिन के जीवन का अंग हो सकता है। कई बार यह देखा गया है कि मीडिया किसी के जीवन से जुड़ी हुई बेहद निजी तस्वीर, ऑडियो-वीडियों, अपने प्लेटफ़ॉर्म पर दिखा देता है। ज़्यादातर मामलों में कोई अभिनेता-अभिनेत्री, कोई राजनेता, कोई सामाजिक कार्यकर्ता या लोकप्रिय हस्ती शामिल होते हैं। लेकिन इसमें कोई श़क नहीं कि आम आदमी भी इसके जद में सकता है। ऐसे विषय वस्तु जारी होने के कुछ ही मिनट में बहुत तेज़ी से फैल जाते हैं और मीडिया को अच्छा ख़ासा दर्शक मिलता है। यही वजह है कि इस तरह की विषय वस्तु को मीडिया संस्थान जगह देता है। नैतिकता का माप दंड यह कहता है कि इस तरह की सस्ती लोकप्रियता या सस्ती प्रगति से बचना चाहिए।  




Fake news- 

There are tons of content are being created on each and every medium. The media are in very hurry to present the content on their platform. In this hurriedness it forget to validate the correctness and authenticity of the news. And this is the problem which is called fake news syndrome. Fake news or so beautifully fabricated and manufactured that it seems to be real. This is the power of the fake news. Ones these are in public domain then they are problem for the society and people. It is being observed that due to the fake news, there has been riots in the society. So it is ethics says that the fake news should not be promoted by any means.  

फेक न्यूज-

वर्तमान समय में सूचना और समाचारों का बाचा गया।इतने सारे चैनल इतने सारे डिजिटल प्रकार हो गए हैं की सूचनाओं का परीक्षण करना 1 चुनौती है। ऐसे हालात में अगर कोई सूचना किसी माध्यम पर प्रसारित हो जाते हैं और वह ग़लत होती है तो कुछ ही समय में वह बहुसंख्यक लोगों के पास पहुँच जाती है। ऐसा देखा गया है कि ग़लत ख़बरों की वजह से अच्छे खासे जान-माल की हानि होती है। यहाँ तक कि दंगे भड़क जाते हैं। इसलिए ग़लत ख़बर को रोकने के लिए मीडिया को कुछ ज़्यादा सजग होना चाहिए।ख़बरों को जल्दीबाजी में प्रस्तुत करने का जो रेस लगा होता है उससे बचना चाहिए।नैतिकता का मापदंड सीधे-सीधे कहता है कि ख़बर वही दिखाया जाना चाहिए जो सही हूँ और संतुलित हूँ। 






Presenting the content without crosschecking- 

The people in the media are in very hurry.  Which stops them to cross checked facts and the data related to any of the news. It is not necessary that what about the things that is presented in the media false one. The question is how much truth they are. It happens that some of the data are exaggerated are some of the fact are missed one. So when the news is presented on the media then that news is not complete one but the only part of the picture. When such a piece of information goes into the public domain and then the public use to not get the full picture of the issue. So according to the ethics the news and information should be provided in holistic manner with proper crosschecking. 

बिना जांचे-परखे सामग्री प्रस्तुत करना- 

मीडिया इतनी जल्दी में होता है की कई बार ख़बरों को बिना जाँचे परखे प्रस्तुत कर देता है। कोई ज़रूरी नहीं है कोई ख़बर ग़लत ही हो।  लेकिन ख़बरों में हो सकता है की उस चीज़ों को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया हो और किसी पक्ष को बिलकुल भी दिखाया गया हो।  ऐसे हालात में दर्शकों के बीच में जो ख़बरें जाएंगे वह पूरी नहीं होगी। सम्पूर्ण ख़बरों के अभाव में लोगों के बीच में जो ज्ञान और राय बनेगा वह आधी-अधूरी होगी। इसलिए मीडिया का यह कर्तव्य बनता है कि ख़बरों को पूरी तरह से जाँच-परख के सही से तैयार करके दर्शकों के सामने पेश करें। जिससे कि उन्हें सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हो और सही जानकारी प्राप्त हो।





Presenting the substandard content- 

India is developing country. There is lots of issue which is very important and crucial in the India. In spite of availability issues, the media used to present the substandard content. This content are prepared in the studio with minimum investment of money and time. The Moto is just to prepare any of the content which can become viral between the public. Without checking the content on the various social parameter. So willingly the media used to present sub standard content in front of the audience and these substandard content are of no use from developing high level of intellectuality or the knowledge level in the society at large. The ethical point of view says that media should present the content which is high on intellectual parameter or knowledge parameter. Which can provide news and information to the people for their growth and development.   

मानक विषय वस्तुओं को प्रस्तुत करना- 

मीडिया से ये अपेक्षा की जाती है कि वह किसी भी क्षेत्र के विषय पर कार्यक्रम बनाएगा तो उसका एक मानक होगा मतलब की उसको दिखाए जाने की कोई ख़ास वजह होगी।मीडिया ज़्यादातर मामलों में काफ़ी जल्दबाज़ी में होता है। वह स्टूडियो से बाहर जाकर कंटेंट कम बनाना चाहता है और स्टूडियों में ही कंटेंट बना कर प्रस्तुत कर देता है। इस तरह से कंटेंट बनाने का दो फ़ायदा होता है एक तो समय बचता है और दूसरा पैसा भी बचता है। यानी मीडिया जानबूझकर आर्टिफिशियल मेड कंटेंट को प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और होती है और मीडिया में कुछ और चल रहा होता है।  मीडिया को अगर देखें तो लगेगा कि सब कुछ बहुत अच्छा है, सब हँसी ख़ुशी में जी रहे हैं, पर ज़मीन पर आप जाएंगे तो वास्तव में लोगों के दुख-दर्द आपको देखने को मिलेगी।जीवन की चुनौतियों को समझ पायेंगे। 




Promoting sensation- 

Indian media believe in sensationalism. It means that those facts, figures and data which can be presented in a very simple and basic manner is also processed with the help of multimedia element. In such a manner that they are nothing but a sensational content. During the corona pandemic, some people died only seeing the news channel. At that time the content were presented in such a horrific manner that people become scared seeing the content on the channel and as a result, they invited heart attack. This type of content no doubt become popular in between the audience in a very less amount of time but this is not good for the mind and body of the audience in long term. 

सनसनी को बढ़ावा देना-

मीडिया के कंटेंट को आप अगर ग़ौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उस में सनसनी का भाव काफ़ी ज़्यादा होता है। उसमें मल्टीमीडिया एलिमेंट्स को इस तरह से जोड़े जाते हैं जिससे की लोगों के शरीर में सिहरन हो। जो चीज़ें निहत ही साधारण तरीक़े से प्रस्तुत किया जा सकता था उसे भी इतना बढ़ा चढ़ाकर दिखाए जाता है कि कई बार लोग हताश परेशान हो जाते हैं। इस बात का उदाहरण करोना महामारी के समय ही देखने को मिला की कई लोगों की मौत मीडिया में न्यूज़ देख कर हो गई। मीडिया की ज़िम्मेवारी बनती है कि वह किसी भी चीज़ सरल, सहज और सटीक तरीक़े से दिखायें। मीडिया के नैतिकता का मापदंड यही कहता है पर ऐसा देखा गया है कि मीडिया अपने करतब से विमुख हो जाती है। 




Violence- 

Violence is favourite subject of electronic media. Whenever there are any sort of violence, then electronic media used to give lots of time and discussion over it. violence sales on the electronic media. This is the reason that while projecting the news related to violence, the media used to glamorise the violence. A petty criminal takes don like a status when news related to it is flashed over the media. Of course this is ethically wrong to glamorise the violence. It is not a healthy practice. It will create a round symbol and role model for the youth as well as society.  

हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना-

मीडिया के लिए हिंसात्मक ख़बरें किसी अवसर से कम नहीं है। ऐसी ख़बरें ख़ूब बिकती है। एक तरह से देखें तो मीडिया हिंसात्मक ख़बरों को इस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती है कि छोटा मोटा अपराधी भी बड़ा बन जाता है। इससे समाज में ग़लत संदेश जाता है। हिंसा की सत्ता स्थापित होती। देश के युवाओं के सामने ग़लत आदर्श प्रस्तुत होता है और अमन पसंद लोगों के लिए यह एक समस्या बन कर खड़ी हो जाती है। नैतिकता का तक़ाज़ा यह कहता है की ऐसी ख़बरें ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाना चाहिए उसे सिर्फ़ सूचना के तौर पर दिखाया जाना चाहिए। 




Promoting the consumerism culture-

media promotes the ideal of excessive consumption of luxury in the life. Ultimately this is the agenda which used to propel the brand endorsement to the media  program. Excessive consumption of goods and products leave the society that debt ridden . It is also not good for health and living. So while promoting the consumerism culture media should  maintain a balance.The principle of ethics says that the people should maintain chastity in the life.  

उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देना-

मीडिया जाने-अंजाने उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ती। मीडिया पर बड़े ब्रांड के विज्ञापन दिखाए जाते हैं साथ ही साथ कार्यक्रम के दौरान उन्हें आगे भी बढ़ाया जाता है। उपभोक्तावादी संस्कृति किसी भी समाज के लिए स्वास्थ्य नहीं माना जा सकता। उपभोक्तावादी संस्कृति समाज में निराशावाद और अभाव का निर्माण करती है। स्वास्थ्य के लिए भी इस तरह की चीज़ें अच्छी नहीं मानी जाती। नैतिकता मैं तो जीवन को जितना सरल, सहज तरीक़े से जिया जाए उतना ही अच्छा माना जाता है। मीडिया को इस तरह के विषय वस्तु को अत्याधिक  बढ़ावा देने से परहेज़ करना चाहिए। जिससे कि लोगों में अधिक से अधिक वस्तुओं का उपयोग करने की लालसा बढ़े। वैसे भी भारतीय समाज विकासशील समाज है, लोगों के पास पैसे और संसाधन का अभाव है, ऐसे में इस तरह की संस्कृति जो कि सबके बस में नहीं है समाज में लाचारी का ही निर्माण करेगी।





Desensitising people-

Excessive consuming the media content is making the people irrational. They are not able to utilise their intellect to reach out any conclusion. They Are dependent upon media for their day to day life decision. It means that people are losing their power of decision making. Even they are not able to judge the magnitude of any subject and incident. If media is saying that this particular subject is big one then people used to believe on it. So indirectly media is making people desensitise towards any issue

संवेदना विहीन समाज का निर्माण- 

मीडिया का अत्याधिक प्रयोग ने लोगों को संवेदन विहीन बना दिया है।वह अपने फैसलों के लिए मीडिया पर निर्भर हो गए हैं।समाज का एक बड़ा वर्ग है जो ख़ुद अपने फ़ैसले लेने में सक्षम नहीं रहा। वह मीडिया के द्वारा ही अपने जीवन से जुड़े फ़ैसले लेता है। यह स्थिति किसी भी तरह से अच्छी नहीं कही जा सकती। एक सशक्त और मज़बूत समाज के लिए लोगों को अपने फ़ैसले ख़ुद से करना चाहिए। ये नहीं कि कोई दूसरा लोगों के हित में फ़ैसला ले। ऐसे में मीडिया अपने फ़ायदे के लिए ही कोई भी सूचना या जानकारी प्रस्तुत करेगा। इसलिए लोगों का संवेदन विलीन होना एक तरह से मीडिया के लिए फ़ायदेमंद साबित हो रहा है। यही वजह है कि लोग मीडिया पर ही बदलाव के ख़बरें पढ़कर, क्रांति की तस्वीरें देखकर गदगद हो उठते हैं और वास्तविक जीवन में भी वैसा कुछ नहीं हो रहा होता है।





Promoting obscenity and vulgarity- 

Media channels are flooded with obscene and vulgar content. There are the reality shows which used to present the content with double meaning sentence. Such a type of content is not considered as healthy for the society. The impact of this type of content on the children and adolescence or not good. Promoting this type of content from public platform are harming the society as a whole. The principle of ethics says that this type of content should not be aired from the channel.

नग्नता और अश्लीलता को बढ़ावा देना-

जानबूझकर मीडिया बाज़ार के हितों की ख़ातिर ऐसे कार्यक्रमों को प्रस्तुत करता है जिसमें नग्नता और अश्लीलता होते हैं। कई ऐसे रियल्टी शो हैं जिसमें द्विअर्थी बातों का सिलसिला चल पड़ता है। इसमें बहस भी होती है पर नतीजा फिर ढाक के तीन पात के बराबर होता है। इस तरह के कार्यक्रम जिसमें नग्नता, अश्लीलता या फिर द्विअर्थी संवाद हो लोगों के मानसिकता को कुंद करता है। उन्हें ग़ैर ज़रूरी चीज़ों की ओर आकर्षित करता है। जो कहीं से उनके जीवन में उत्थान का आधार नहीं होती।इस तरह के कार्यक्रम अगर बच्चे देखते हैं तो उनकी मानसिकता पर काफ़ी बुरा असर होता है। नैतिकता का यह मापदंड है कि सार्वजनिक माध्यमों से इस तरह के कार्यक्रम नहीं दिखाई जानी चाहिए।  



At the last, it can be said that the content which is presented on the electronic channel is a scanned through ethical parameter also. There are some of the issues which electronic channel need to focus on. These are very urgent points if electronic channel will not pay their attention on rectifying this malpractices, then in future they will lose their credibility and acceptability in the society at large. 

अंत में यही कहा जा सकता है कि मीडिया पर जो भी दिखाया जाता है उसको नैतिकता के मापदंड पर भी परखा जाता है। कुछ बातें जो ज़रूरी है जिस पर मीडिया को ध्यान देना चाहिए। अगर मीडिया ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में मीडिया की जो लोकप्रियता है और स्वीकार्यता है उसमें कमी आएगी।

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